Delhi Blast : दिल्ली लाल किला धमाके से काल के गाल में समा गईं कई आम जिंदगियां, प्रिंटिंग प्रेस से लेकर ई-रिक्शा वाले तक के दिल दहला देने वाले किस्से सामने आये

जांच एजेंसियों की शुरुआती पड़ताल में यह सामने आया है कि इस धमाके में कम-से-कम आठ लोग मारे गए और कई घायल हुए हैं, जबकि मृतकों की संख्या आगे बढ़ स

Nov 11, 2025 - 22:50
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Delhi Blast : दिल्ली लाल किला धमाके से काल के गाल में समा गईं कई आम जिंदगियां, प्रिंटिंग प्रेस से लेकर ई-रिक्शा वाले तक के दिल दहला देने वाले किस्से सामने आये
Delhi Blast : दिल्ली लाल किला धमाके से काल के गाल में समा गईं कई आम जिंदगियां, प्रिंटिंग प्रेस से लेकर ई-रिक्शा वाले तक के दिल दहला देने वाले किस्से सामने आये

नई दिल्ली : राजधानी के पुराने शहर में स्थित लाल किला के बाहर सोमवार शाम हुए कार धमाके ने बड़ी ही गहिराई से लोगों की जिंदगी को झकझोर कर रख दिया है। इनमें सीधे-साधारण कामगारों, छोटे व्यवसायियों, और उस परिवार के सदस्य भी शामिल हैं जो रोज-रोज की आम मेहनत से अपना गुजारा करते थे। जैसे विकल्प के रूप में प्रिंटिंग प्रेस में काम करता एक व्यक्ति, वहीं एक अन्य ई-रिक्शा चलाकर अपने भाइयों-बहनों को पालता था। लेकिन इस विस्फोट ने उन्हें और उनके परिवारों को अचानक एक ऐसी वास्तविकता से जूझने पर मजबूर कर दिया है जो किसी ने सोचा भी नहीं था।

घटना उस शाम करीब शाम 6 50 बजे हुई जब एक सफेद रंग की कार – जिसे बाद में Hyundai i20 बताया गया – लाल किले मेट्रो स्टेशन के समीप स्थित एक लाल बत्ती पर रुकी और उसी समय उसमें अचानक से विस्फोट हुआ। धमाके की तीव्रता इतनी थी कि आसपास की कई गाड़ियाँ भी आग की लपटों में घिर गईं, मेट्रो स्टेशन वड़ों के पास नुकसान पहुंचा और लोगों में भगदड़ मच गई।

जांच एजेंसियों की शुरुआती पड़ताल में यह सामने आया है कि इस धमाके में कम-से-कम आठ लोग मारे गए और कई घायल हुए हैं, जबकि मृतकों की संख्या आगे बढ़ सकती है। सबसे दर्दनाक हिस्सा यह है कि जिन लोगों ने अपनी रोजी-रोटी चलायी थी, उनमें से कई इस हादसे में इससे भी बड़े बोझ के साथ परिवार छोड़ गए हैं।

उनमें से एक थे 35 वर्षीय जुम्मन मोहम्मद, जो चांदनी चौक इलाके में ई-रिक्शा चलाकर अपनी पत्नी और तीन बेटों का पालन-पोषण कर रहा था। परिवार ने बताया कि जुम्मन-भाई वह एकमात्र कमाऊ सदस्य थे और उनकी मौत ने परिवार को अचानक अनाथ सा कर दिया।

प्रिंटिंग प्रेस में काम करने वाले 34 वर्षीय अमर कटारिया ने भी अपनी पत्नी व तीन-साल के बेटे को पीछे छोड़ते हुए अंतिम साँस ली। उनके परिवार ने पोस्टर पर हाथ पर किये टैटू ‘माँ मेरी पहली मोहब्बत, पिता मेरी ताकत’ देखकर उन्हें पहचाना। ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं जहाँ एक-एक कमाऊ व्यक्ति के चले जाने से पूरे परिवार की दुनिया बदल गई है।

उदाहरण के लिए, उत्तर-प्रदेश के श्रावस्ती जिले के रहने वाले भूरे मिश्रा ने अपनी दिल्ली में रहने वाले तीन बेटों-बेटियों को फोन किया था - दो ने जवाब दिया, तीसरे का फोन नहीं उठा। बाद-में पता चला कि वही तीसरा बेटा विस्फोट में मारा गया था।

घटना के बाद स्थानीय अस्पतालों, विशेषकर Lok Nayak Jeeva Prabha Hospital (एलएनजेपी) के सामने मृतकों के परिजन टूटते-बिखरते दिखे। कुछ शव इतने क्षतिग्रस्त थे कि पहचान करना बेहद मुश्किल था।

जांच एजेंसियों के अनुसार इस विस्फोट को अभी तक आतंकी हमला माना गया है, और मामला National Investigation Agency (एनआईए) को सौंपा गया है। हालांकि कुछ स्रोतों का कहना है कि यह कोई पारंपरिक आत्मघाती हमला नहीं था, बल्कि संदिग्ध ने घबराहट में विस्फोट को ट्रिगर किया हो सकता है।

मुख्य बातें:

  • इस हमले में प्रायः वे लोग मारे गए जिनकी कमाई सीमित स्रोतों पर आधारित थी — जैसे ई-रिक्शा चालक, छोटा व्यापारी, मजदूर।

  • परिवारों को अचानक जिम्मेदारियों का भारी बोझ मिला है और भविष्य की असुरक्षा बढ़ गई है।

  • सुरक्षा-एजेंसियों द्वारा बड़े पुख्ता नेटवर्क की खोज हो रही है जिसमें डॉक्टर, मेडिकल प्रोफेशनल, आदि के नाम सामने आ रहे हैं।

  • सरकारी तौर पर मृतकों के परिवारों को मुआवजा देने की घोषणाएँ की गई हैं, लेकिन कई लोगों को अब तक पहचान नहीं मिली है।

इस हादसे की गहराई में देखें तो यह सिर्फ एक विस्फोट नहीं बल्कि उस सामाजिक और आर्थिक अस्थिरता की तस्वीर भी है जहाँ एक कामगार की जिंदगी एक पल में अधूरा हो जाती है। हजारों-हजार रुपये की मासिक कमाई, परिवार का समर्थन, बच्चे-बच्चियों की पढ़ाई-लिखाई, सब कुछ अचानक अधर में लटक जाता है। अमर कटारिया का टैटू, जुम्मन मोहम्मद का ई-रिक्शा, भूरे मिश्रा के बेटे – ये सिर्फ नाम नहीं बल्कि हजारों-उसजार अन्य कहानियों के प्रतिनिधि हैं।

यह घटना इस बात की भी याद दिलाती है कि ऐसे हमलों से सामाजिक सुरक्षा-जाल कितनी जल्दी टूट सकता है। रोज-रोज़ की जिंदगी के सच को हम नजरअंदाज करके नहीं चल सकते। जहां कल तक एक व्यक्ति अपने दैनिक काम से घर वापस जा रहा था, आज उसी घर का चिराग बुझ गया। ऐसे में सरकारों, सुरक्षा एजेंसियों और समाज को मिलकर ऐसे हादसों से न केवल बचने के उपाय करने होंगे बल्कि प्रभावित परिवारों की पुनर्स्थापना पर भी ध्यान देना होगा।

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