सुप्रीम कोर्ट की राज्य-सरकारों पर तीखी टिप्पणी, फ्री रेवड़ी के लिए पैसा है, जजों को देने के लिए नहीं

कोर्ट ने यह टिप्पणी तब की जब अटॉर्नी जनरल आर वैंकटरमणि ने कहा कि सरकार को न्यायिक अधिकारियों के वेतन और सेवानिवृति लाभों पर निर्णय लेते समय वित्तीय बढ़ाओ पर विचार करना होगा। कोर्ट की यह टिप्पणी विशेष रूप से महाराष्ट्र सरकार की लाडली-बहना योजना...

Jan 7, 2025 - 23:19
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सुप्रीम कोर्ट की राज्य-सरकारों पर तीखी टिप्पणी, फ्री रेवड़ी के लिए पैसा है, जजों को देने के लिए नहीं

Supreme Court's harsh comment on state governments.

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को रेवड़ियां बांटे जाने पर कटाक्ष करते हुए कहा कि राज्यों के पास मुफ्त रेवड़ियां बांटने के लिए तो पैसे हैं लेकिन जजों को भुगतान करने के लिए नहीं हैं। कोर्ट ने इस संबंध में महाराष्ट्र की लाडकी बहना और दिल्ली में राजनैतिक दलों द्वारा नकद राशि बांटने की गई घोषणाओं का भी जिक्र किया। जब जजों को सैलरी देने की बात आती है तो सरकारें वित्तीय बाधाओं की बात करती है।' ये टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने की, जो जजों के वेतन मामले की सुनवाई कर रही थी। बेंच ने कहा कि राज्य के पास मुफ्त की रेवड़ियां बांटने के लिए पैसे हैं, लेकिन जजों की सैलरी-पेंशन देने के लिए नहीं। एससी बेंच ने दिल्ली चुनाव में की जा रही घोषणाओं का भी जिक्र किया जहां, 'कोई 2100 तो कोई 2500 रुपये देने की बात कर रहा है।

सुप्रीम कोर्ट में ऑल इंडिया जज्स एसोसिएशन ने 2015 में जजों की सैलरी और रिटायरमेंट बेनिफिट्स को लेकर एक याचिका दायर की थी। इसमें कहा गया था कि जजों को समय पर वेतन नहीं मिल रहा है और ये कि रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली बेनिफिट्स से भी जज महरूम रह जा रहे हैं। इस मामले की सुनवाई जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह ने की। एसोसिएशन ने 2015 में याचिका दाखिल की थी जिसमें जिला अदालतों को पेंशन और सेवानिवृत लाभ से लंबित सेकेंड नेशनल ज्यूडिशयल कमीशन की सिफारिशें लागू करने का मुद्दा शामिल है। पूर्व सुनवाई के दौरान भी कोर्ट ने जिला अदालतों के जजों की कम पेंशन को लेकर चिंता जताई थी।

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इस मामले में वरिष्ठ वकील के परमेश्वर न्यायमित्र हैं। कोर्ट ने यह टिप्पणी तब की जब अटॉर्नी जनरल आर वैंकटरमणि ने कहा कि सरकार को न्यायिक अधिकारियों के वेतन और सेवानिवृति लाभों पर निर्णय लेते समय वित्तीय बढ़ाओ पर विचार करना होगा। कोर्ट की यह टिप्पणी विशेष रूप से महाराष्ट्र सरकार की लाडली-बहना योजना और दिल्ली में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा किए जा रहे चुनावी वादों का हवाला देते हुए कहा है। कोर्ट ने कहा कि कोई 2100 रुपए तो कोई 2500 रुपए देने का वादा कर रहा है, लेकिन जजों को वेतन और पेंशन देने के लिए पैसे नहीं है। पिछली सुनवाई में कोर्ट ने जिला अदालतों के रिटायर्ड जजों को मिलने वाले सेवानिवृत्त लाभ और पेंशन की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा था कि पेंशन से संबंधित कई मामले काफी गंभीर है।

सीजेआई ने कहा था कि जिला अदालतों के रिटायर्ड जजों को सिर्फ 15000 रुपये प्रतिमाह पेंशन मिलता है। एक महिला जज साल में 96000 हजार यानी प्रत्येक माह 8000 रुपये पेंशन मिल रहा है। मंगलवार को सुनवाई के दौरान परमेश्वर ने जजों को ठीकठाक भुगतान करने की बात करते हुए कहा कि अगर हम ज्यादा विविधतापूर्ण न्यायपालिका चाहते हैं, अगर हम चाहते हैं कि नए टैलेंट आएं तो हमें अपने जजों का ध्यान रखना होगा। उन्हें बेहतर भुगतान करना होगा। इस पर केंद्र सरकार की ओर से पेश अटार्नी जनरल आर। वेंकटरमणी ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों से सरकार पर पेंशन की जिम्मेदारी बढ़ती जा रही है और पेंशन स्केल तय करते समय वित्तीय चिंताओं का ध्यान रखा जाना चाहिए।

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इस पर पीठ की अगुवाई कर रहे जस्टिस गवई ने रेवड़ियां बांटने पर टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्यों के पास उन लोगों को बांटने के लिए पर्याप्त पैसा है जो कुछ काम नहीं करते। जब हम वित्तीय चिंताओं की बात करें तो हमें यह भी देखना चाहिए। उन्होंने कहा जब चुनाव आते हैं तब आप लाडकी बहना और अन्य नई योजनाओं की घोषणा करते हैं जिसमें आप एक तय राशि देते हैं। सीजेआई ने यह भी कहा था कि अब जिला अदालतों के जज पदोन्नति होकर हाईकोर्ट आये हैं। लेकिन उस समय तक उनकी उम्र 56-57 साल हो चुकी होती है।

इस उम्र में वो आर्बिट्रेशन का मामले में नहीं ले रहे है और उनको 30000 हजार रुपये पेंशन मिलती है। इसलिए इस मुद्दे पर सरकार को विचार करने की जरूरत है। कोर्ट ने कहा था कि लंबी सेवा के बाद, वे कैसे सर्वाइव करेंगे। यह उस तरह का सेवा कार्यालय है, जहां आप पूरी तरह से अक्षम हो जाते है। आप अचानक प्रेक्टिस में नहीं कूद सकते है और 61-62 साल की उम्र में हाईकोर्ट में वकालत शुरू नहीं कर सकते हैं।

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