वैवाहिक विवाद में सुप्रीम कोर्ट जज का संदेश: पत्नी पति को लट्टू न समझे, एक-दूसरे का सम्मान करें।
सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने एक वैवाहिक विवाद की सुनवाई के दौरान पति-पत्नी के बीच आपसी समझ और सम्मान पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि पत्नी
सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने एक वैवाहिक विवाद की सुनवाई के दौरान पति-पत्नी के बीच आपसी समझ और सम्मान पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि पत्नी को अपने पति को लट्टू की तरह नहीं समझना चाहिए, क्योंकि वैवाहिक जीवन में दोनों एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। यह टिप्पणी 14 अक्टूबर 2025 को एक मामले की सुनवाई के दौरान आई, जहां एक पत्नी ने पति से अलगाव और गुजारा भत्ता मांगा था। जस्टिस नागरत्ना ने बेंच के साथ मिलकर कहा कि शादी एक ऐसा बंधन है, जहां पूर्ण स्वतंत्रता संभव नहीं। अगर कोई पूरी तरह स्वतंत्र रहना चाहता है, तो उसे शादी नहीं करनी चाहिए। यह बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और वैवाहिक संबंधों पर बहस छेड़ दी। जस्टिस नागरत्ना ने आगे कहा कि पति को भी पत्नी को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना चाहिए, खासकर अगर वह गृहिणी है। यह टिप्पणी न केवल इस मामले का हिस्सा थी, बल्कि भारतीय परिवार व्यवस्था पर एक व्यापक संदेश भी देती है।
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ जज हैं और भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश बनने की दावेदार मानी जाती हैं। उनका जन्म 30 अक्टूबर 1962 को बेंगलुरु में हुआ था। वे पूर्व मुख्य न्यायाधीश एके सिकरी की बेटी हैं। नागरत्ना ने कर्नाटक विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री ली और वकील के रूप में करियर शुरू किया। 2008 में उन्हें कर्नाटक हाईकोर्ट में जज नियुक्त किया गया। 2021 में वे सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं। 2027 में उनकी रिटायरमेंट है, जो उन्हें संभावित पहली महिला सीजेआई बनाती है। जस्टिस नागरत्ना के फैसलों में महिलाओं के अधिकारों पर विशेष जोर रहता है। वे समानता, सामाजिक न्याय और पारिवारिक मूल्यों की पक्षधर हैं। उनके कई फैसलों ने वैवाहिक कानूनों को नई दिशा दी है। इस मामले में भी उन्होंने पारंपरिक और आधुनिक दृष्टिकोण का संतुलन बनाया।
मामला एक दंपति के बीच विवाद से जुड़ा था। पत्नी ने पति पर आरोप लगाया कि वह आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं हैं और पति की कमाई पर निर्भर हैं। उन्होंने अलगाव की मांग की और गुजारा भत्ता मांगा। सुनवाई के दौरान जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि शादी में दोनों पक्षों को एक-दूसरे पर भावनात्मक और आर्थिक निर्भरता स्वीकार करनी पड़ती है। उन्होंने उदाहरण दिया कि पत्नी पति को लट्टू की तरह नहीं समझ सकती, क्योंकि लट्टू को घुमाने वाला व्यक्ति ही नियंत्रण में रखता है। लेकिन वैवाहिक जीवन में दोनों बराबर के भागीदार होते हैं। जस्टिस नागरत्ना ने कहा, अगर कोई पूरी स्वतंत्रता चाहता है, तो शादी न करें। यह बयान बेंच के अन्य सदस्य जस्टिस आर महादेवन के साथ था। कोर्ट ने मामले को और सुनवाई के लिए स्थगित कर दिया, लेकिन जज की टिप्पणी चर्चा का केंद्र बनी।
यह टिप्पणी जस्टिस नागरत्ना के पिछले बयानों से जुड़ती है। अप्रैल 2025 में बेंगलुरु में एक सम्मेलन में उन्होंने कहा था कि भारतीय परिवार तेजी से बदल रहे हैं। महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता और शहरीकरण से पारिवारिक संरचना प्रभावित हो रही है। उन्होंने कहा कि अदालतों में पारिवारिक विवादों का बड़ा हिस्सा समझ और सम्मान की कमी से आता है। अगर पति-पत्नी एक-दूसरे का सम्मान करें और खुद को समझें, तो कई मामले सुलझ सकते हैं। जस्टिस नागरत्ना ने जोर दिया कि पति को गृहिणी पत्नी को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना चाहिए। जुलाई 2024 में एक फैसले में उन्होंने कहा था कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला को भी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता मिल सकता है। उन्होंने लिखा कि पति को अपनी कमाई का हिस्सा पत्नी को देना चाहिए, ताकि वह सम्मानजनक जीवन जी सके। यह फैसला महिलाओं की आर्थिक सुरक्षा पर केंद्रित था।
फरवरी 2025 में एक अन्य फैसले में जस्टिस नागरत्ना ने कहा था कि अगर पहली शादी कानूनी रूप से समाप्त नहीं हुई, तो भी दूसरी शादी से गुजारा भत्ता मांग सकती है। बेंच ने कहा कि सामाजिक कल्याण के प्रावधानों को उदार व्याख्या दी जानी चाहिए। जस्टिस नागरत्ना ने जोर दिया कि कानून का उद्देश्य महिलाओं को भटकने या गरीबी में धकेलना नहीं है। अगस्त 2025 में एक मामले में उन्होंने कहा था कि शादी में पूर्ण स्वतंत्रता असंभव है। एक दंपति के विवाद में उन्होंने पूछा कि अगर आप पूरी तरह स्वतंत्र रहना चाहते हैं, तो शादी क्यों की? यह टिप्पणी वर्तमान मामले से मिलती-जुलती है। जस्टिस नागरत्ना का मानना है कि शादी परिवार की मूल इकाई है और इसे मजबूत बनाने के लिए दोनों पक्षों को त्याग करना पड़ता है।
भारतीय अदालतों में वैवाहिक विवादों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, 2024 में पारिवारिक मामले 10 प्रतिशत बढ़े। ज्यादातर मामले गुजारा भत्ता, तलाक और बच्चों की कस्टडी से जुड़े हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि शहरीकरण और महिलाओं की शिक्षा से पुरानी मान्यताएं टूट रही हैं। जस्टिस नागरत्ना ने अप्रैल 2025 के सम्मेलन में कहा कि समाज की मानसिकता बदलनी होगी। पुरुषों को समझना चाहिए कि गृहिणी पत्नी 24 घंटे परिवार के लिए काम करती है। बदले में प्यार, सम्मान और आर्थिक सहायता मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह बदलाव बच्चों की परवरिश पर भी असर डालेगा। अगर माता-पिता एकजुट रहें, तो बच्चे मजबूत बनेंगे।
यह बयान सोशल मीडिया पर बहस का विषय बन गया। कई लोगों ने जस्टिस नागरत्ना की तारीफ की। एक यूजर ने लिखा कि यह पुरानी सोच को चुनौती देता है। लेकिन कुछ ने आलोचना की। एक फेमिनिस्ट ने कहा कि यह महिलाओं को निर्भरता सिखाता है। जस्टिस नागरत्ना ने स्पष्ट किया कि उनका मतलब समानता से है। शादी में दोनों बराबर हैं। महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता मिलनी चाहिए, लेकिन परिवार का सम्मान भी जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों ने महिलाओं के अधिकार मजबूत किए हैं। 2023 में समलैंगिक विवाह पर फैसले में जस्टिस नागरत्ना ने कहा था कि विवाह एक सामाजिक संस्था है। लेकिन समानता के लिए कानून बदलना होगा।
वैवाहिक कानूनों में बदलाव आ रहे हैं। हिंदू विवाह अधिनियम 1955 में तलाक के आधार बढ़े हैं। मुस्लिम महिलाओं के लिए ट्रिपल तलाक प्रतिबंधित हो गया। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि कानून को सामाजिक बदलाव के साथ तालमेल रखना चाहिए। उन्होंने जोर दिया कि अदालतें केवल विवाद सुलझाने वाली नहीं, बल्कि परिवार बचाने वाली भी होनी चाहिए। इस मामले में कोर्ट ने पति को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया, लेकिन सलाह दी कि दोनों समझौता करें। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि समझौता अदालत से बेहतर है।
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