लघुकथा: "गौरैया"
"गौरैया" लघुकथा
पौ फटते ही घबराई नन्ही गौरैया नुचे पंख समेटे घोंसले से बाहर भागकर पास पड़े काई लगे लकड़ी के तख्ते पर सहमी बैठी ,घायल मन और तन के साथ जननी को याद कर रही थी जो कल रात पता नहीं क्यूं लौट नहीं पाई?....और रात के अंधेरे में उसके पंख नुच गए ...जन्मदाता के हाथो....
दुनियां के क्रूर रास्तों से डरती गौरैया कहां जाए ?...
कहीं फिर...नहीं ..निराश आंखों में हौसला भर फिर उड़ने के लिए पूरी ताकत लगा कर निकल पड़ी वो....अनजान सफर पर।
अमिता मिश्रा "मीतू"
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