छंदमुक्त: एक औरत देती समाज को नए नए पल्लव....... ।
छंदमुक्त
एक औरत
देती समाज को
नए नए पल्लव
स्वयं के अंश से
करती पोषित
खादरूपी संस्कार से
बिना कोई उम्मीद
मजबूत करती समाज
पीढ़ी दर पीढ़ी
रचती विस्तृत संसार
जोड़ती कड़ियां विकास की
फिर भी की जाती प्रताड़ित
कभी शारीरिक कभी मानसिक
बंधी रहती बेड़ियों से
कभी मर्यादा कभी नेह की
विवशताओं के पिंजरे में कैद
मार खाती आंसू बहाती
जिम्मेदारी निभाती परिवार की
एक दिन अचानक छोड़
समाज की डोर
निकल पड़ी स्वयं की खातिर
जीने का अधिकार ढूंढने
विस्तृत संसार में
कोसता है उस पल
तथाकथित समाज
और उसके पहरेदार
नारी विद्रोही है...स्वर गूंजते कानों में
नीच बेहया और न जाने कितने सवाल
कानो में घोलते जहर
अनगिनत प्रलाप...
विडंबनाओं के बोझ तले
आज करके बंद कान
हृदय करके कठोर
चल पड़ी है वो औरत अकेली
छीनने अपने हिस्से का आसमान।
मीतू मिश्रा
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