SC का ऐतिहासिक फैसला- दफ्तर जाते-आते समय हादसे में कर्मचारी की मौत पर परिवार को मिलेगा मुआवजा।

UP News: SC ने 29 जुलाई 2025 को कर्मचारी मुआवजा अधिनियम, 1923 (Employees’ Compensation Act, 1923) के तहत एक महत्वपूर्ण फैसला ....

Aug 1, 2025 - 19:37
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SC का ऐतिहासिक फैसला- दफ्तर जाते-आते समय हादसे में कर्मचारी की मौत पर परिवार को मिलेगा मुआवजा।
SC का ऐतिहासिक फैसला- दफ्तर जाते-आते समय हादसे में कर्मचारी की मौत पर परिवार को मिलेगा मुआवजा।

SC ने 29 जुलाई 2025 को कर्मचारी मुआवजा अधिनियम, 1923 (Employees’ Compensation Act, 1923) के तहत एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि कोई कर्मचारी अपने घर से कार्यस्थल जाते समय या कार्यस्थल से घर लौटते समय हादसे का शिकार हो जाता है और उसकी मृत्यु हो जाती है, तो उसका परिवार मुआवजे का हकदार होगा, बशर्ते हादसे और कर्मचारी के काम के बीच स्पष्ट संबंध स्थापित हो। यह फैसला जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की खंडपीठ ने दविशाला और अन्य बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और अन्य मामले में सुनाया। इस निर्णय ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया और कर्मचारी मुआवजा आयुक्त द्वारा दिए गए मुआवजे को बहाल कर दिया। यह फैसला कर्मचारियों और उनके परिवारों के लिए एक बड़ी राहत है, खासकर उन लोगों के लिए जो असामान्य समय पर काम के लिए यात्रा करते हैं।

मामला महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले का है, जहां शाहू संपतराव जाधवर नामक एक कर्मचारी एक चीनी कारखाने में चौकीदार के रूप में काम करते थे। उनकी ड्यूटी सुबह 3 बजे से सुबह 11 बजे तक थी। 22 अप्रैल 2003 को, वह अपनी मोटरसाइकिल से सुबह की शिफ्ट के लिए कारखाने जा रहे थे, जब रास्ते में, कारखाने से लगभग 5 किलोमीटर दूर, उनकी मोटरसाइकिल का एक घातक हादसा हो गया। इस हादसे में उनकी मृत्यु हो गई। शाहू के परिवार में उनकी विधवा, चार बच्चे और मां थीं, जिन्होंने कर्मचारी मुआवजा अधिनियम के तहत मुआवजे की मांग की। कर्मचारी मुआवजा आयुक्त और उस्मानाबाद के सिविल जज ने परिवार को 3,26,140 रुपये का मुआवजा और 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज (22 मई 2003 से) देने का आदेश दिया।

हालांकि, बीमा कंपनी ने इस फैसले के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील की। हाईकोर्ट ने आयुक्त के फैसले को पलट दिया और कहा कि हादसा कर्मचारी के कार्यस्थल पर नहीं हुआ था, इसलिए यह “काम के दौरान और काम से उत्पन्न होने वाला” हादसा नहीं माना जा सकता। इस फैसले से असंतुष्ट होकर, शाहू के परिवार ने SC में अपील दायर की। SC ने इस मामले में कर्मचारी मुआवजा अधिनियम की धारा 3 में उल्लिखित वाक्यांश “काम के दौरान और काम से उत्पन्न होने वाला हादसा” की व्याख्या की और यह तय किया कि क्या कार्यस्थल तक की यात्रा को भी इसमें शामिल किया जा सकता है।

SC ने अपने फैसले में कर्मचारी मुआवजा अधिनियम और कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 (ESI Act) को कल्याणकारी कानून माना, जिनका उद्देश्य कर्मचारियों और उनके परिवारों को कार्य-संबंधी चोट, मृत्यु या बीमारी से होने वाले नुकसान से राहत देना है। कोर्ट ने कहा कि इन कानूनों की व्याख्या उदार और उद्देश्यपूर्ण होनी चाहिए ताकि कर्मचारियों को अधिकतम लाभ मिल सके। कोर्ट ने कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम की धारा 51E का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया है कि घर से कार्यस्थल तक या कार्यस्थल से घर तक की यात्रा के दौरान होने वाला हादसा, यदि समय, स्थान और परिस्थितियों का काम से संबंध हो, तो उसे “काम के दौरान और काम से उत्पन्न” माना जाएगा। कोर्ट ने इस प्रावधान को स्पष्ट करने वाला माना और इसे कर्मचारी मुआवजा अधिनियम पर भी लागू किया।

कोर्ट ने “नोशनल एक्सटेंशन” (काल्पनिक विस्तार) के सिद्धांत का भी जिक्र किया, जिसके तहत कार्यस्थल की परिभाषा को कार्यस्थल की भौतिक सीमाओं से परे बढ़ाया जा सकता है। इस सिद्धांत के अनुसार, यदि कर्मचारी का हादसा काम से संबंधित समय, स्थान और उद्देश्य के करीब है, तो उसे कार्य-संबंधी माना जा सकता है। इस मामले में, शाहू सुबह 3 बजे की शिफ्ट के लिए कारखाने जा रहे थे, जो उनकी ड्यूटी का हिस्सा था। कोर्ट ने पाया कि हादसे का समय, स्थान (कारखाने से 5 किलोमीटर दूर), और उद्देश्य (ड्यूटी पर जाना) काम से सीधे जुड़ा था। इसलिए, यह हादसा “काम के दौरान और काम से उत्पन्न” माना गया।

SC ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को गलत ठहराते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने सिद्धांत को संकुचित रूप से लागू किया। कोर्ट ने आयुक्त के मुआवजे के आदेश को बहाल किया और बीमा कंपनी को आदेश दिया कि वह मुआवजा और ब्याज का भुगतान करे। साथ ही, नियोक्ता को मुआवजे का 50 प्रतिशत हिस्सा दंड के रूप में चुकाने का भी निर्देश दिया गया, क्योंकि उनके पास वैध बीमा पॉलिसी थी। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस तरह के मामलों में कर्मचारी के परिवार को मुआवजा देने से इनकार करना कानून के उद्देश्य के खिलाफ होगा।

यह फैसला कर्मचारियों, विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो रात की पाली या असामान्य समय पर काम करते हैं। भारत में लाखों कर्मचारी, जैसे फैक्ट्री वर्कर, सुरक्षा गार्ड, और ड्राइवर, अपने कार्यस्थल तक पहुंचने के लिए लंबी दूरी तय करते हैं। ऐसे में, यात्रा के दौरान होने वाले हादसे उनके परिवारों के लिए आर्थिक संकट पैदा कर सकते हैं। यह फैसला सुनिश्चित करता है कि ऐसे मामलों में परिवारों को वित्तीय सहायता मिले।

कानूनी विशेषज्ञों ने इस फैसले को एक मील का पत्थर बताया है। वकील अनिल शर्मा ने कहा कि यह फैसला कर्मचारी मुआवजा अधिनियम के दायरे को व्यापक करता है और कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा करता है। उन्होंने कहा कि यह फैसला उन कर्मचारियों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जो ग्रामीण क्षेत्रों में काम करते हैं, जहां कार्यस्थल तक पहुंचने के लिए सार्वजनिक परिवहन सीमित होता है। सामाजिक कार्यकर्ता रीता वर्मा ने कहा कि यह फैसला नियोक्ताओं को भी कार्यस्थल की सुरक्षा और कर्मचारियों की यात्रा की परिस्थितियों पर ध्यान देने के लिए प्रेरित करेगा।

हालांकि, कुछ विशेषज्ञों ने यह भी चेतावनी दी है कि इस फैसले का लाभ उठाने के लिए हादसे और काम के बीच स्पष्ट संबंध होना जरूरी है। उदाहरण के लिए, यदि कर्मचारी अपनी ड्यूटी के रास्ते में व्यक्तिगत काम के लिए रुकता है और हादसा होता है, तो मुआवजा मिलना मुश्किल हो सकता है। इसके अलावा, कर्मचारी मुआवजा अधिनियम उन कर्मचारियों पर लागू नहीं होता जो कर्मचारी राज्य बीमा योजना (ESIC) के तहत आते हैं। ऐसे कर्मचारियों को ESIC के तहत लाभ मिलता है।

यह फैसला उन परिवारों के लिए भी एक सबक है जो मुआवजे के लिए दावा करते हैं। उन्हें हादसे के समय, स्थान, और परिस्थितियों के सबूत, जैसे पुलिस रिपोर्ट, मेडिकल रिकॉर्ड, और नियोक्ता से ड्यूटी शेड्यूल, जमा करने होंगे। मुआवजा आयुक्त इन सबूतों के आधार पर दावे का मूल्यांकन करता है। धारा 4 के अनुसार, मृत्यु के मामले में मुआवजा कर्मचारी की मासिक मजदूरी का 50 प्रतिशत, अधिनियम की अनुसूची IV के प्रासंगिक कारक से गुणा करके, या 1,20,000 रुपये, जो भी अधिक हो, दिया जाता है।

निष्कर्षतः, SC का यह फैसला कर्मचारी मुआवजा अधिनियम, 1923 की व्याख्या को और स्पष्ट करता है और कर्मचारियों के परिवारों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है। यह फैसला उन लाखों कर्मचारियों के लिए राहत की सांस है जो अपने कार्यस्थल तक की यात्रा के दौरान जोखिम का सामना करते हैं। यह नियोक्ताओं और बीमा कंपनियों को भी याद दिलाता है कि कल्याणकारी कानूनों का उद्देश्य कर्मचारियों की रक्षा करना है। साथ ही, यह सरकार के लिए एक संदेश है कि सड़क सुरक्षा और आपातकालीन सेवाओं को बेहतर करने की जरूरत है ताकि इस तरह के हादसों को कम किया जा सके। यह फैसला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक न्याय की दिशा में भी एक बड़ा कदम है।

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