Special Article: निज स्वार्थ-पूर्ति हेतु महानायकों का चारित्रिक हनन करना उचित नहीं है- विवेकानन्द सिंह
मेवाड़ के अप्रतिम शासक, सिसोदिया राजवंश के महाराणा संग्राम सिंह, यानी राणा साँगा (महाराणा कुम्भा के पौत्र एवं महाराणा रायमल के पुत्र) की बहादुरी के किस्सों ....

लेखक- विवेकानन्द सिंह
ज्ञातव्य है कि गत् 21 मार्च, 2025 को राज्यसभा सांसद, रामजीलाल सुमन ने सदन में वीरशिरोमणि राणा साँगा के प्रति एक अशोभनीय टिप्पणी की जिसके चलते देश के विभिन्न नगरों में भिन्न-भिन्न प्रकार से उनका विरोध हो रहा है।
बहरदोई (हाथरस) निवासी सांसद, रामजीलाल सुमन एक पुराने एवम् वरिष्ठ नेता हैं, लेकिन उनके बयान ने भारतीय इतिहास को कलंकित कर दिया, उनके बयान ने सदन की गरिमा को धूमिल कर दिया, उनके बयान ने भारतवर्ष के मानबिंदु के गौरव को मिट्टी में मिला दिया। उन्हें अपने इस कृत्य के लिए पूरे देश से क्षमा याचना करनी चाहिए; क्योंकि निज स्वार्थपूर्ति हेतु महानायकों का चारित्रिक हनन करना उचित नहीं है।
मेवाड़ के अप्रतिम शासक, सिसोदिया राजवंश के महाराणा संग्राम सिंह, यानी राणा साँगा (महाराणा कुम्भा के पौत्र एवं महाराणा रायमल के पुत्र) की बहादुरी के किस्सों से हमारा इतिहास भरा पड़ा है। हम बचपन से ही सुनते आ रहे हैं कि एक भुजा, एक आँख, एक पैर खोने के बाद भी राणा साँगा ने अपना पराक्रम नहीं खोया और ऐसे महान् शासक को माननीय सांसद ने गद्दार कहकर सम्बोधित किया, यह ठीक नहीं हुआ।
सांसद द्वारा कही गई बात कि इब्राहिम लोदी को हराने के लिए राणा साँगा ने बाबर को बुलाया था; एक कपोल-कल्पित बात है, क्योंकि राणा साँगा ने 1517 में खतौली (कोटा) के युद्ध में और फिर 1518 में बाड़ी (धौलपुर) के युद्ध में इब्राहिम लोदी को बुरी तरह परास्त किया था। ऐसेमें यह कहना कि स्वयं से दो बार हारे हुए सुल्तान को हराने के लिए राणा साँगा ने बाबर को बुलाया तर्कसंगत बात नहीं लगती है। दूसरी बात यदि राणा साँगा ने बाबर को आमंत्रित किया था, तो फिर दोनों में युद्ध क्योंकर हुआ। सर्वविदित है कि साँगा और बाबर के मध्य पहला युद्ध फरवरी 1527 मे बयाना में हुआ, जिसमें क्षत्रिय सेना ने बाबर की सेना को हरा दिया और फिर 17 मार्च, 1527 को दोनों की सेना खानवा में आमने-सामने हुई। इस युद्ध में राणा साँगा घायल हो गए, अतः उन्हें युद्ध के मैदान से हटाकर बसवा (दौसा) ले जाया गया।
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यदि राणा ने बाबर को बुलाया होता, तो बाबर द्वारा स्वलिखित जीवनी, 'तुज़्क-ए-बाबरी' (बाबरनामा) में इसका ज़िक्र होना चाहिए था।लेकिन बाबर ने अपनी जीवनी में साँगा के बारे में कुछ और ही लिखा है। बाबरनामा में राणा साँगा का उल्लेख है कि "बादशाह लिखते हैं कि जब हम काबुल में थे तो राना ने खैर ख़्वाही से एलची भेजकर यह बात ठहराई थी कि जब बादशाह उधर से दिल्ली तक आजावेंगे तो मैं आगरे की तर्फ़ कूच करूँगा मैंने इब्राहीम को ज़ेर करके दिल्ली और आगरा ले लिया वहाँ तक भी इस हिन्दू की तर्फ़ से कुछ हरकत जाहिर न हुई मगर इसने कई मंजिल बढ़कर खंडार का किला जो मुकन के बेटे हुसेन के कब्जे में था घेर लिया......"
वर्तमान समय की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में हम वैसेही अपनी गौरवगाथाओं से विमुख हो गए हैं, ऐसेमें ऐसी ओछी बातों से अपनी भावी पीढ़ी के भीतर की ऊर्जा मर जाएगी और जब वह अपने पूर्वजों के बारे में ऐसी बाते सुनेगा तो स्वाभाविक रूप से दुःखी होकर आत्मग्लानि से भर जाएगा और फिर श्यामनारायण पाण्डेय की निम्नलिखित कविता भी उसके आत्मबल को दृढ़ करने में असमर्थ सिद्ध होगी -
साँगा को अस्सी घाव लगे¸
मरहमपट्टी थी आँखों पर।
तो भी उसकी असि बिजली सी
फिर गई छपाछप लाखों पर॥
इस सन्दर्भ में अखिल भारतीय क्षत्रिय मंच के आजमगढ़ मण्डल प्रमुख, बृजेश सिंह बघेल ने बताया कि "आजकल एक प्रचलन चल पड़ा है कि सदन में किसी संवेदनशील विषय पर कुछ बोल दो और फिर मीडिया के सामने आकर कहो कि मेरी मंशा वह नहीं थी, जैसा लोगों ने समझा है।"
उक्त मंच के बलिया जिला अध्यक्ष, कैप्टन सोहन सिंह ने बताया कि "राणा साँगा जैसे देशरक्षक, जिसने इब्राहिम लोदी और बाबर से कई बार युद्ध किया था, को गद्दार कहनेवाले नेता को माननीय कहलाने का कोई अधिकार नहीं है, उनको सदन से निष्कासित कर देना चाहिए।" अन्नू बाबा फाउंडेशन (पिपराकलां, बलिया) के प्रवीण प्रताप सिंह ने कहा कि "सदन में इस प्रकार की बात करना क्षुद्र मन:स्थिति का परिचायक है, ऐसे सांसदों के विरुद्ध कठोर कदम उठाना चाहिए।"
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